
युधिष्ठिर का वध क्यों करना चाहते थे अर्जुन, कैसे और क्यों हुई ये विचित्र घटना- महाभारत के प्रमुख पात्र अर्जुन अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को बहुत ही मान- सम्मान देते थे, ये बात सभी जानते हैं, लेकिन यह बात बहुत कम जानते हैं कि एक बार अर्जुन ने युधिष्ठिर का वध करने के लिए तलवार उठा ली थी।
महाभारत के कर्ण पर्व में बताया गया है कि जब अर्जुन ने युधिष्ठिर को मारने के लिए तलवार उठाई, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें किस प्रकार बचाया। ये प्रसंग इस प्रकार है…
एक बार की बात है जब महाभारत का भीषण युद्ध चल रहा था, तो शुरुआत में कौरवों के सेना का नेतृत्व पितामह भीष्म कर रहे थे, जिसके कारण कौरवों को हरा पाना पांडवों के लिए एक गहन चिंता का विषय था, लेकिन अंततः पांडवों ने शिखंडी की मदद से पितामह भीष्म को गांडीव धारी अर्जुन द्वारा बाणों की शैय्या पर परास्त कर सुला दिया गया।

इसके बाद कौरवों के सेना प्रमुख के रूप में परशुराम शिष्य गुरू द्रोणाचार्य को नियुक्त किया गया और उन्होंने अपने पराक्रम से पांडवों के सेना मे त्राहि त्राहि मचा दिए, उसके अस्त्र और शस्त्र के सामने स्वयं उनके सबसे श्रेष्ठ शिष्य महाबली अर्जुन भी नहीं टिक पाए, तब पाश्चात्य पांडवों ने छल कर गुरू द्रोणाचार्य को मारने का योजना वनाया जिसके परिणाम स्वरूप जब गुरु द्रोणाचार्य युद्ध रहे थे तो, महाबली भीम ने एक अश्वत्थामा नामक हाथी का बध कर दिया |
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र का भी नाम भी था, जब द्रोणाचार्य के युधिष्ठिर से पूछने पर मालूम चला की सच मे भीम ने अश्वत्थामा का बध कर दिया है, जिसे सुनने के बाद द्रोणाचार्य के हाथों से अस्त्र और शस्त्र छुट गया तभी द्रोपदी के भाई धृष्टधुम्न ने गुरू द्रोणाचार्य का सर धड़ से अलग कर दिया और गुरू द्रोणाचार्य भी मारे गए उसके बाद कौरवों के सेनापति के रूप में महाबली, महा दान वीर कर्ण को सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया।
यही से शुरू होता है युधिष्ठिर का अर्जुन द्वारा बध की कहानी, तो चलिए जानते हैं पूरा घटना “युधिष्ठिर का वध क्यों करना चाहते थे अर्जुन, कैसे और क्यों हुई ये विचित्र घटना”।

जब अर्जुन अपने गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम मे शिक्षा अर्जित कर रहे थे, तो अर्जुन ने एक प्रण लिया था की जो भी उससे उसका अपना अस्त्र त्यागने को बोलेगा वह उनका बध कर देगा।
महाभारत के युद्ध के समय में जब अर्जुन और कर्ण के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था, तभी महाबली कर्ण का रथ का पहिया धरती मे धस गया और उसके सारे अस्त्र और शस्त्र को अपने रथ पर रख अपने रथ के पहिए को धरती से निकालने लगा, तभी अर्जुन के बड़े भाई युधिष्ठिर ने अर्जुन और कर्ण के बीच असमानता देखते हुए उन्होंने अर्जुन को उसका अपना गांडीव ( जो की अर्जुन का धनुष था) महाबली कर्ण को सौपने को कहा, ये सुनते ही अर्जुन ने अपनी तलवार उठाई और युधिष्ठिर का वध करने के लिए आगे बढ़ा |
यह देखकर श्री कृष्ण ने अर्जुन को रोकते हुए कहा “हे पार्थ तुम ये क्या अनर्थ करने जा रहे हो, जिसे तुम मारने जा रहे हो वो तुम्हारे पिता तुल्य ज्येष्ठ भ्राता है। इसके जबाव में अर्जुन ने अपना लिया गया प्रण को कृष्ण को बताया, कृष्ण जी तो थे ही परम ज्ञानी, उनके पास हर समस्या का समाधान था।
इस समस्या का समाधान हेतु अर्जुन कृष्ण के पास गए, तब श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो सलाह दिया वो सराहनीय था।
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श्रीकृष्ण अर्जुन को क्या सलाह दिए।
इस अनर्थ को रोकने के लिए श्री कृष्ण ने अर्जुन को युधिष्ठिर का अपमान करने को कहा, क्यूंकि उनका कहना था कि किसी का अपमान करना उसके मारने के समान होता है, श्री कृष्ण का बात को मानते हुए अर्जुन ने युधिष्ठिर का ज़म कर अपमान किया जिससे अर्जुन का अपना प्रण पुरा हुया किन्तु अर्जुन अपने ज्येष्ठ भाई का अपमान करकर आत्मग्लानि मे भर गया और उसे अपने आप से घृणा होने लगी, जिसके कारन अर्जुन ने आत्महत्या करने का निश्चय किया |
इस परिस्थिति को देखते हुए, श्री कृष्ण ने अर्जुन को खुद का प्रशंसा करने को कहा, जिसपे उनका ये मानना था की स्वयं अपना प्रशंसा करना आत्महत्या करने के समान है और इसी तरह श्री कृष्णा ने युधिष्ठिर और अर्जुन, दोनों का वध होने से बचाया और धर्मयुद्ध को जारी रखने और जिताने मे एक बार फ़िर से अपना अहम योगदान दिया।
यही कारण था कि अर्जुन युधिष्ठिर का वध करना चाहते थे।

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Frequently Asked Questions
01. अर्जुन के कितनी पत्नियाँ थी?
दो, कृष्ण की बहन सुभद्रा और द्रौपदी।
02. अर्जुन के पुत्र का नाम क्या था?
अर्जुन के पुत्र का नाम अभिमन्यु था।
03. अर्जुन की माता का नाम क्या था?
अर्जुन की माँ का नाम कुन्ती था।