एक वक़्त था जब mummy से परमिशन मांगना पड़ता था के प्लीज़ crax खाने दो। I’ve always been a sensitive child, फट्ट से बीमार हो जाता था । यहाँ तक कि स्कूल नहीं जाता था तो teachers को भी मालूम होता था के बीमार ही होगा। आज भी खास दूँ तो माँ पापा और बहन झट्ट से पूछते है “ठीक तो है ना? क्या खाया था तूने?
मैं pampered नहीं हूँ। हाँ, protected हूँ। जिस घर से आता हूँ वहाँ आराम और आलस जैसे शब्द गाली की तरह प्रयोग होते है। तो काम चोरी तो आप कर ही नहीं सकते। क्योंकि कर्म ही धर्म है-यही सीखा है।
फिर दोस्त भी ऐसे ही मिले है जो दुनिया की सारी ख़ुशियाँ और तर्रक्की मेरे लिये माँगते है।
कुछ ख़ास बात नहीं था, बस crax के 10 rp के छोटे से packet ने इस बात का एहसास दिलवाया के कुछ चंद लोग ही साथ रहने वाले है अंत तक। उन्हीं को महफ़ूज़ रखना ज़िंदगी के बहुत सारे बाक़ी कामों में से एक बहुत ज़रूरी काम होना चाहिए ।
बाक़ी भगवान पर छोड़ देना चाहिए। जब हम अतीत सिर्फ़ पलों में जी सकते है तो भविष्य ख़्वाबों में क्यों नहीं।
और अगर पीछे देखने पर आज का “ख़ुद” बेहतर लगे तो ज़िंदा रहने का मज्ज़ा ही आ जाता है। नहीं?
अपना ध्यान रखिए।
– ओम प्रकाश