
इस पॉट का पौधा सूख चुका है और मिट्टी एकदम अनुपजाऊ हो चुकी है। अगर इसमें कोई भी पौधा लगाया जाएगा तो निश्चित रूप से वह सूख जाएगा। हम उसे चाहे जितना पानी देंगे लेकिन किसी नए पौधे का बच पाना मुश्किल रहेगा। इस पॉट में नया पौधा लगाने से पहले इसकी मिट्टी बदलनी पड़ेगी। उसके बाद कोई भी पौधा लगाया जाएगा तो वह जरूर लग जाएगा।
जीवन भी इसी पॉट के जैसा है। बहुत लंबे समय तक खाली पड़े रहने से हमारी शक्ति कम होने होने लगती है। उसके बाद हम चाहे जितना प्रयास कर लें हमें कहीं सफलता नहीं मिलती। कई बार सिर्फ पानी देने से काम नहीं चलता, उसके लिए पूरी मिट्टी बदलनी पड़ती है। ऐसे ही कई बार सिर्फ प्रयास काफी नहीं होता उसके लिए हमें पूरी प्रक्रिया फिर से दोहरानी पड़ती है। जैसे कि कब क्या काम कैसे करना है। उसकी रूपरेखा, समय और अपनी क्षमता के अनुसार नए सिरे से शुरुआत करनी पड़ती है।
तमाम बार हम प्रयास तो करते हैं लेकिन सफलता नहीं मिलती। इसका यह मतलब नहीं कि कमी हममें में है, बल्कि हो सकता है कि हम गलत तरीके या गलत दिशा में प्रयास कर रहे हों। कई बार चीजें एकदम सही लगती हैं। ऐसा लगता है कि सब अगला कदम बढ़ेगा और हम अपनी मंजिल पर खड़े होंगे लेकिन होता इसके विपरीत है। वह आख़िरी कदम चलने के बाद हम अपनी मंजिल से बहुत दूर चले जाते हैं। इसका यह मतलब कतई नहीं कि हमें वह कदम नहीं चलना, लेकिन कुछ सतर्कता जरूर बरतनी थी।
इस दुनिया में कोई भी ऐसा काम नहीं जो आदमी न कर ले। पहिया बनाने से लेकर दूसरे ग्रह पर जाना, आग के आविष्कार से लेकर न्यूक्लियर बम तक बनाना, ऊंचे ऊंचे पहाड़ चढ़ना, बड़े बड़े रेगिस्तान में रहना…. आदमी सबकुछ कर लेता है। इसलिए हारना या निराश हो जाने का विकल्प आदमी के पास है ही नहीं। हम निराश हो सकते हैं लेकिन क्षणिक।
एक बार अपनी अप्रोच, अपना तरीका अपनी दिशा बदलकर देखिए। एक बार अपने काम को रिव्यु कीजिए। देखिए आपका प्रयास सही दिशा में है या नहीं। एक बार देखिए जहां आपका प्रयास होना चाहिए वहां है या नहीं और इसके बाद मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ऐसी कोई चोटी नहीं जिस पर आप चढ़ न लें, ऐसी कोई मंजिल नहीं जिसे आप पा न लें, ऐसा कोई काम नहीं जो आप कर न लें……
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